मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

जिंदगी हमे हर रोज कुछ न कुछ नया सिखाती है

जिंदगी हमे कभी कभी न जाने कैसे मोड़ पे लाती है,
बनी हुयी जिंदगी, बस एक पल बिखर जाती है,
बार बार जिंदगी बिखेर कर, वो हमे एक संवरी हुयी जिंदगी की हमारी जिंदगी में अहमियत बताती है...
जिंदगी ठोकरे दे दे कर हम सब को चलना सिखाती है,
जिंदगी हमे हर रोज कुछ न कुछ नया सिखाती है...
चाहे कोई साथ चले न चले, जिंदगी बेफिक्र तन्हा-अकेले चलती जाती है,
जिंदगी इस तरह से हमे इस तरह से तन्हा हो कर कभी रुकना नहीं ये बताती है,
जिंदगी हर रोज हमे कुछ नया बताती है...


गुरुवार, 23 सितंबर 2010

मेरे सपने कही खो गए

ऐसा लगता है मेरे सारे सपने कही खो गए,
लोगो की की खातिर हम न जाने क्या क्या हो गए,
मेरी भी थी कुछ अपनी  ख्वाहिशें, मेरी भी थी चाहतें, मेरे भी अपने कुछ सपने थे,
शीशे की तरह चूर चूर सपने मेरे हो गए,
सूखे पत्तों की तरह तेज हवा में खो गए,
जो चाहा मै वो न कर सका, बेवसी का आलम तो ये था,
के चाह कर भी मै किसी से न कह सका,
सिसकता रहा, मन ही मन में तो जब तब मै रोया भी, पर नज़र सबकी हमेशा मुझ पर थी,
मै चाह कर भी अश्क न बहा सका, दर्द को न बहा सका,
मै कभी मै न हो सका, जो चाहा मेरे अपनों ने मै वो होता गया,
सब कहते गए मै सुनता गया, जहा तक मुमकिन था,
उनके ख्वाबों की मंजिल बुनता गया,
किसी ने भी मेरे ख्वाबों के बारे में सुना ही नहीं
जैसे मैंने अपनी जिंदगी के बारे कोई ख्वाब बुना ही नहीं|
कोई बात नहीं, मै सबसे कह दूंगा के मैंने कोई ख्वाब बुना ही नहीं,
क्या होते हैं ख्वाब? मैंने तो इस चिड़िया का नाम पहले सुना ही नहीं|
मन ही मन मै ख्वाब बुनता रहूँगा, जो लोग कहेंगे मै सुनता रहूँगा|
अपने ख्वाबों को मै अपनी अमानत की तरह सहेजता रहूँगा,
जिस दिन ये गुलामी जान लेने पे बन आयेगी,
मै पिंजरा तोड़ के खुले आसमान में उड़ चलूँगा,
एक दिन मै मेरे ख्वाब जी के रहूँगा,
चाहे जो हो जाये अपने ख्वाबों को मै मरने नहीं दूंगा.

सोमवार, 20 सितंबर 2010

हुस्न वाले ...

My Friend Manoj Padaliya  sent me this almost 1 month ago, I have his permission to publish this to my blog :).
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हुस्न  वाले  वफ़ा  नहीं करते...
इश्क  वाले  दगा  नहीं  करते...
जुल्म  करना  तो  उनकी  आदत  है ...
ये  किसी  का  भला  नहीं  करते...
जो  नज़र  आर-पार  हो  जय...
वो  ही  दिल  का  करार  हो  जाये...
अपनी  जुल्फों  का  दाल  दो  साया...
जिंदगी  खुस्गावर  हो  जाये ...
तेरी  नजरो  को  देख  पाए  अगर ...
शेख  बी  मै-कुसर  हो  जाये...
तुझको  देखो  जो  एक  नज़र  वो रंग...
चाँद  भी  शर्मसार  हो  जाये...
आइना  अपने  सामने  से  हटा...
ये  न  हो  खुद  से  प्यार  हो  जाये...
भूल  हो  जाती  है  यु तैश  मैं  आया  न  करो...
फासले  ख़तम  करो  बात  बढाया  न  करो ...
ये निगाहे , ये  इशारे , ये  आदयें  तौबा ...
इन  शराबो  को  सरे  आम  लुटाया  न  करो ...
शाम  गहरी  हो  कुछ  और  हसीं  होती  है...
साये  जुल्फ  को  चेरे  से  हटाया  न  करो...
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शुक्रिया मनोज.

सोमवार, 6 सितंबर 2010

कोई तो सामने आये, जिसे मोहब्बत रास आयी हो

चाहा   जिसे भी मैने जितनी शिद्दत से ,
उसने उतनी जोर से मेरा दिल तोडा है,
चेहरे हर बार अलग अलग थे,
पर हर किसी ने मेरी आखों में अश्क, और,
मेरे दिल को   तन्हा और तडपता हुआ छोड़ा है,




खैर , बहुत मुमकिन है के मुझ में ही कमी हो शायद,
पर ऐसा कोई तो सामने आये, जिसे मोहब्बत रास आयी हो !!!


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मुझे मोहब्बत पर पूरा यकीन है, but, m not lucky with love :(...

रविवार, 8 अगस्त 2010

अल्फाजों में कैद कुछ जज़्बात

शायरी क्या है मुझे पता नहीं,
मै नग्मों की बंदिश जानता नहीं,
मै जो भी लिखता हूँ, मान लेना सब बकवास है,
जो कुछ भी हैं ये कैद इन अल्फाजों में ,
बस ये मेरे कुछ दर्द और मेरे कुछ ज़ज्बात हैं

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मै सच नहीं कहता

मै चुप रह कर भी कभी कभी चुप नहीं रहता,
कभी कभी बहुत कुछ कह कर भी कुछ नहीं कहता,
आदत नहीं अब किसी को सच सुनने की,
इसलिए अब मै सच नहीं कहता,
ऐसा नहीं है, के मै ख़ुशी से झूठ बोलता हूँ,
पर इस डर से कही २-४ दुश्मन और न बना लूँ, मै सच नहीं कहता
अब तो बस वही कहता हूँ, जो सब सुनना कहते हैं,
जो बात मेरे दिल में होती है, मै वो बस नहीं कहता,
कहता तो बहुत कुछ हूँ, बस सच नहीं कहता,
सच्चाई की बातें कभी भी गलती से मै अब नहीं करता,
जिसकी जी भी मर्जी हो वो करे, मै किसी को भी कुछ अब नहीं कहता ,
सच्चे होने का नकाब यहाँ तो हर किसी ने पहन रखा है,
डर लगता है मुझे नकाब पहने सच्चे लोगों से,
इन सच्चों की जमात में कही मुझे भी शामिल न कर लें कही,
इसी डर से गलती से किसी के सामने मै अब सच नहीं कहता,

जैसी मेरी आदत हो गयी अब सच न कहने की,
सभी ने आदत बना ली है सच न सुनने की,
क्यों बेवजह मै किसी की आदत बिगाडू, बस इसीलिए मै सच नहीं कहता|

कही कोई गलती से भी मुझे सच्चा न समझ ले, इसीलिए, एक ही गलती दुहराता हूँ मै बार बार,
हर किसीको को मै सच सच बता देता हूँ मै, के मै कभी भी सच नहीं कहता

सोमवार, 28 जून 2010

एक सपना और तलाश सपने की

a week ago I saw blog of one of my friend Sheetal, I found her blog post really inspiring, 
her blog inspired me to write this. 
she left her MNC job, to peruse her dream that is becoming a film maker.
the saying "dream is not that u see when u r sleeping, dream is something that not let u sleep", is very much true.
this is dedicated to everyone, who can't sleep, because, their dream is not letting them sleep.
I am not a good writer/poet, but, I am making a honest attempt, hope, everyone will like my creation.

एक  सपना  देखा  मैंने, फिर सो न  सकी , बहुत कोशिश  की, 
पर  नीद मेरी पलकों से  कोशों दूर थी, 
मै  उठी, और बस अपने सपने, अपनी मंजिल की तलाश में चल पड़ी, 
मै  चलती  रही, बढती  रही, थक गयी, पर हारी नहीं,
सोचा  मैंने, के  मै  कहा  आ गयी हु? यकीन था की कही तो आ गयी हूँ,
मुझे यकीन है, के मंजील के  एक कदम और करीब आ गयी हूँ -2,

मै  तो कुछ भी थी सोच कर चली नहीं, 
इसलिए क्या मिला क्या खो गया, इस बात का मुझे गिला नहीं,
ज़माना क्या कहता  मेरे  बारे में, क्या फर्क पड़ता है,
मै तो किसी से भी आज तक मिली नहीं, किसी ने मुझसे तो  आकर कुछ भी कहा नहीं,
मेरी राहें ही  हैं मेरी हमसफ़र, मेरी हमकदम, 
मैंने रहो को अब तक दिया दगा  नहीं, क्या हुआ  गर साथ कोई मेरे चला नहीं...


जो गिर गयी तो फिर से उठूंगी, खुद को सम्हाल कर फिर चल पडूँगी,
दर्द मुझे बस, हर पल  हो रही देरी का होगा, और किसी दर्द की परवाह न  करुँगी,
मंजिल  का पता है मुझे, रास्तो का पता है, 
कोई न बताये तो कोई बात नहीं, मै रहे अपने मंजिल की धुंड लुंगी,
जो  न चलने दिया मुझे ज़माने ने इन रहो पे, तो मै अपनी राहें खुद बना लुंगी,
अब अपनी मंजिल पर ही जा कर रुकुंगी, अब तो वही जाकर साँस लुंगी -2

न थाकुंगी न रुकुंगी, जब तक पहुँच न जाऊ  मंजिल तक,
मै हर रोज बढती रहूंगी, बस  अब  ठान लिया  है, बढती रहूंगी,
किसी  ने  कहा है:
 "मंजिले उन्ही को मिलती हैं, जिनके सपनो में जान होती है,
  पंखों से कुछ  भी नहीं होता है दोस्तों, हौसलों  से  उड़ान  होती  है"
कोई  ये  न  सोच  लेना  के, पंख नहीं  हैं  मेरे  तो  मै  कैसे  udungi?
मुझे  यकीन है मै एक दिन आस्मां  की  सैर  करुँगी,
हौसला मुझमे है आसमान को छूने का, एक दिन मै आसमान छूकर रहूंगी-2,
एक दिन मै आसमान छूकर रहूंगी

रविवार, 20 जून 2010

ये नेता नहीं हैं, ये हैं मौत के सौदागर


धरा  बेच  देंगे, गगन  बेच  देंगे,
ये  नेता  नहीं  हैं, ये  हैं  मौत  के  सौदागर,
ये  तो  लाश  पर  से  उठा  कर  कफ़न  बेच देंगे,

मौत  के  सौदागर


खुशियाँ  मानना इनसे  बचकर  ज़रा,
नहीं  तो  ये  तेरा  खुशियों  से  भरा  आँगन  बेच  देंगे ,
कभी  किसी  से  न  कहना , के , ये  नीला  आसमान  हमारा  है ,
पाता  नहीं  किसको  ये  नीला  गगन  बेच  देंगे ,

जाना  जो  कभी  तू  बाग़  में , तो  सांस  धीरे  से  ही  लेना ,
नहीं  तो  ये  हमारा  महकता  हुआ  चमन  बेच  देंगे ,

इन्हें  तो  हर  दिन  इन्तेजार  होता  है  बस  हादसों  का ,
गर  लाशें जमा  करने  पर  भी  वोटें   मिलने  लगे  इनको ,
तो  लाश  इक्कठा   करने  में  ये  अपनी  लाज-शर्म  बेच  देंगे ,




इनका  न  है  ज़मीर  जिंदा , अगर  हम  अब  भी  न  जगे  तो ,
ये  तो  विदेशो  में  हमारी  माँ, बहन  बेच  देंगे... 

सोमवार, 10 मई 2010

School Days


Big gang of friends, colourful uniforms,
silly fights for no reason and for some reason ( I bet we all had our shares)
Group photos, and willingness to stand near her/him :),
friendly teachers, not-so-friendly principal
(I think most principals are not so friendly, because nature of their job)
combined studies, studies for hours and no studies ;),


From School Days

never ending P.T. periods
(our pt teacher always find a reason to punish me :( ),
Rocking annual days,
and talk about performances till next annual days,
(my dance on "Mai khiladi tu anadi" song, was remembered for years) ,
Group discussion  on anything & nothing,
who cares what we are discussing, we just want to discuss,

the wait for the ring of lunch hour,
and so many hands in a single lunch box.
some times you over eat and some time you are hungry

boring lessons, super boring weekly tests,
Remarkable marks, terror report cards,
self parent signatures (i bet a lot of ppl have done this)

justified mistakes, childish reasons,
Lovable picnic and tours,
Antakshri all the way,
no winners and those silly romantic songs

school life is just a heaven,
the heaven we have lived,
the heaven we want to live again and again,
we still can't believe that those days are gone,
we want to live all those  moments once again,
we (all, m sure) want to be with our school friends once again,
we want to be innocent once again,
we want to be careless once again
we want those group discussion once again,
those lunch boxes once again,
we just want to live our school life once again,
best friends to remember school life once again...!!!!


School life is simply unforgettable,
and I bet no one can one in their life time can forget the school life, can you?

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है!!!

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, Facebook तो हजारो दोस्त हो गए हैं सबके, पर, बगल में कौन रहता है पता नहीं, 
एक मेरा दोस्त  "मुझसे" अब touch में नहीं, क्योकि हर दिन मै उसे scrap regular karta nahi...

twitter pe प्रियंका चोपड़ा ने क्या कहा ये है सबकी जुबान पर, पर न जाने माँ की बात से क्यों सर दुखता है???
orkut पर एक "दोस्त" ने लिखा "down with fever" तो न जाने कितनी "get well soon"  की scraps कर दी,
third row में  बैठे  बन्दे  को चोट लगी है, आते जाते सबने देखा है,
पर कैसे हुआ, जानने का वक़्त वक़्त ही नहीं, get well soon उसे एक बार भी किसी ने कहा नहीं,
कैसे कहते, वो तो ऑनलाइन friend list में मिला ही नहीं




Flicker/Picasa/Facebook पे दोस्तों की हजारो तस्वीरों पे कमेन्ट कर दिया,
पर बगल में बैठे सह कर्मी (Colleague) को एक बार देखा तक नहीं...!!!
 न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, न जाने क्यों ऐसी ये दुनिया हो गयी है...


हर वक़्त online होना वक़्त की ज़रुरत बन गयी है, 
पर मोहल्ले की अपनी ही लाइन में रहने वालो से मिलने का वक़्त ही नहीं!!!
जो कहना है आज कल सब Twit करते हैं, हर बात अब अपनी लोग Twitter पे करते हैं,
किसी को आज कल चाय की एक प्याली के संग घंटो बातें करने वाला कोई दोस्त मिलता ही नहीं !!!
ये Social Net की दुनिया भी बड़ी अजीब है, online friends तो बहुत मिलते हैं,
पर पुराने दिनों जिन्हें हम कहा करते थे दोस्त, ऐसा कोई साथी यहाँ क्यों  मिलता नहीं,
scrap, twit, wall post तो सब करते हैं, पर अपने दोस्त को कोई अब चिठियाँ अब लिखता नहीं,

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, न जाने क्यों ऐसी ये दुनिया हो गयी है...

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

बिन कहे ही सब कुछ बता दिया

अलफ़ाज़  हमेशा  नहीं  होते  अंदाज़-ए-बयाँ का  जरिया, ये हमने  जाना उस  दिन,
जब मैंने अपना  हाल-ए-दिल  उनको  अपनी  आँखों  में  पढ़ा  दिया,
देखा  तो  बहुत  देर  मैंने  उनको, पर  कुछ  भी  न  कहा ,
न  कुछ  कह  कर  भी  मै  बहुत  कुछ  कह  गया,
और  बिन  कहे  ही  मैंने  सब  कुछ  बता  दिया,
चुप  चाप  ही  मैंने  सब  कुछ  सुना  दिया ,
बिन  कहे  ही  सब  कुछ  बता  दिया , बिन  कहे  ही  सब  कुछ  बता  दिया...


बहुत   सोचता  था  के  उनसे  ये  कहूँगा, जो  आयेंगे  वो  मेरे  सामने, उनको  बहो  में  भर  लूँगा,
नर्म  नर्म से उनके  हाथो को  अपने  हाथो  में  ले  कर, एक  शरारत  से  उनके  लब  चूम  लूँगा,
जो  उस  दिन  वो आये  मेरे सामने, पल रुक सा  गया, मै  कुछ भी न कह सका,
उनकी नजरो  में जो  देखा मैंने  अपना  अक्स, तो एक  पल को  लगा  जैसे मैंने  ज़न्नत को  पा लिया,
न मैंने कुछ  कहा, न उसने  कुछ कहा, दोनों ही देर तक खामोश रहे,
पर उसने भी खामोशियों की जुबां से अपना हाल-ए-दिन  बता दिया,
न जाने ये  कैसे हुआ, कब हो गया ये, आज भी एक ख्वाब सा लगता है,
के बिन कहे ही हमने एक दुसरे  को सब कुछ बता दिया, खमोश  रह  कर  भी  हाल-ए-दिल  सुना दिया...





खामोश  अल्फाजों  की  ताक़त  को  अब  मै  जनता  हु, वो  न  कहे  मुझसे भले  ही  एक  भी अलफ़ाज़,
पर उसकी  नजरो  में  कैद  हर  खामोश  लफ्ज़  का  मतलब  मै  जनता  हु,
ये  हुआ  है, पर  कभी  कभी  ख्वाब  सा  लगता  है, पर अब  मै खामोशियों   का  मतलब भी जानता हु (kuchh had tak),

अलफ़ाज़  अब  तो  हमेशा ही   कम  से  लगते  हैं, 
जब  भी उनसे कहनी होती है  दिल  की  कोई  बात, हमेशा  अलफ़ाज़  मुझको  कम  से  लगते हैं,
न  जाने कब ये हो गया मुझको, अल्फाजों को छोड़ मैंने खामोशियो  को  अपनी  जुबां  बना  लिया,
एक  लफ्ज़  भी  न  कहा, बस  चुप  रहा, पर  बिन कहे ही सब कुछ बता दिया, बिन  कहे ही सब कुछ बता दिया...

बुधवार, 24 मार्च 2010

मुझे बस थोडा सा आसमान चाहिए

मुझे बस  थोडा  सा  आसमान  चाहिए,
ले  सकूँ  मै  जिस  में  खुलकर  सासें ,   मुझे  ऐसा  खुला  खुला  सा  जहां चाहिए ,
मुझे  बस  थोडा  सा  आसमान  चाहिए,







न  हो  बंधन  जहा  जाति , धर्म , रंग  और  मजहब  का  मुझे  ऐसा  एक  जहां  चाहिए ,
जहाँ  न  हो  कोई  छोटा न कोई  बड़ा , मुझे  एक  ऐसा   जहाँ  चाहिए , मुझे  बस  थोडा  सा  आसमान  चाहिए



नहीं  चाहिए  मुझे  यह  ज़मीन  पर  इंसानों  के  लिए  खिची  लकीरें ,
न  मुझे  इस  जहां  में  कोई  बटवारा  चाहिए , मुझे  ऐसे  हर  बटवारे  से  छुटकारा  चाहिए ,
मिल   सके  अगर  मुझको  एक  बार  जो  फिर  से , तो  मुझे  खुल  के  जीने  का मेरा हक  दुबारा  चाहिए ...

उस  उपरवाले  ने  जैसा  सौंपा  था  तुमको ,
वैसे  ही  हरा  भरा , हँसता  हुआ  सा  महकता  हुआ  सा  जहाँ  चाहिए ,
मुझे  मेरा  खुला  खुला  सा  आसमान  चाहिए , मुझे  मेरा  जहाँ  चाहिए...

आगे  अभी   और  भी  है ... (to be continued)