गुरुवार, 23 सितंबर 2010

मेरे सपने कही खो गए

ऐसा लगता है मेरे सारे सपने कही खो गए,
लोगो की की खातिर हम न जाने क्या क्या हो गए,
मेरी भी थी कुछ अपनी  ख्वाहिशें, मेरी भी थी चाहतें, मेरे भी अपने कुछ सपने थे,
शीशे की तरह चूर चूर सपने मेरे हो गए,
सूखे पत्तों की तरह तेज हवा में खो गए,
जो चाहा मै वो न कर सका, बेवसी का आलम तो ये था,
के चाह कर भी मै किसी से न कह सका,
सिसकता रहा, मन ही मन में तो जब तब मै रोया भी, पर नज़र सबकी हमेशा मुझ पर थी,
मै चाह कर भी अश्क न बहा सका, दर्द को न बहा सका,
मै कभी मै न हो सका, जो चाहा मेरे अपनों ने मै वो होता गया,
सब कहते गए मै सुनता गया, जहा तक मुमकिन था,
उनके ख्वाबों की मंजिल बुनता गया,
किसी ने भी मेरे ख्वाबों के बारे में सुना ही नहीं
जैसे मैंने अपनी जिंदगी के बारे कोई ख्वाब बुना ही नहीं|
कोई बात नहीं, मै सबसे कह दूंगा के मैंने कोई ख्वाब बुना ही नहीं,
क्या होते हैं ख्वाब? मैंने तो इस चिड़िया का नाम पहले सुना ही नहीं|
मन ही मन मै ख्वाब बुनता रहूँगा, जो लोग कहेंगे मै सुनता रहूँगा|
अपने ख्वाबों को मै अपनी अमानत की तरह सहेजता रहूँगा,
जिस दिन ये गुलामी जान लेने पे बन आयेगी,
मै पिंजरा तोड़ के खुले आसमान में उड़ चलूँगा,
एक दिन मै मेरे ख्वाब जी के रहूँगा,
चाहे जो हो जाये अपने ख्वाबों को मै मरने नहीं दूंगा.

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक दिन मै मेरे ख्वाब जी के रहूँगा,
    चाहे जो हो जाये अपने ख्वाबों को मै मरने नहीं दूंगा.
    जहां चाह होती है वहीं राह होती है और मंजिल भी....बहुत अच्छी
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. जिस दिन ये गुलामी जान लेने पे बन आयेगी,
    मै पिंजरा तोड़ के खुले आसमान में उड़ चलूँगा,
    एक दिन मै मेरे ख्वाब जी के रहूँगा,
    चाहे जो हो जाये अपने ख्वाबों को मै मरने नहीं दूंगा.
    Ye hui na baat! Anek shubhkamnayen!

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