गुरुवार, 3 सितंबर 2009

बुलावा खुदा ने भेजा है

"मेरी रुख्सदगी का तू ऐसा जश्न मानना,
के चाहे मिट जाए मेरी यादों के हर निशाँ ये जहाँ,
पर दिन मेरी रुख्सदगी का दिन सालों याद रखे ये जमाना"



न गम करो मेरे जाने का लोगो, के फ़िर आऊंगा मैं
जाना तो पड़ेगा ही क्योंकि बुलावा उस "खुदा" ने भेजा है,
भला उसके बुलावे को कैसे ठुकराऊंगा मैं,
अभी जाने दो मुझे, पर वडा है मेरा लौट कर ज़रूर आऊंगा मई,


हर एक पल जो जिया हु यहाँ पे, उसे कभी न भूल पाउँगा मैं,
जो हो शिकायत मुझसे अभी ही कर लो, चला गया जो मैं एक बार यहाँ से,
किसी की कोई भी शिकायत दूर न कर पाउँगा मैं,
मुझको कोई भी जल्दी नही जाने, मजबूर हु मई, कुछ भी नही है मेरे हाथो,
क्योंकि, बुलावा खुदा ने भेजा है, चाह कर भी और रुक न पाउँगा मैं,






वो जिनको शिकायत है मुझसे, आना जरूर मेरी मैयत पर,
आ कर मेरी मैयत मेरे मुस्कुराने से, मेरी मैयत पे जी भर मुस्कुरा लेना,
खुश हो लेना ये सोच के खुदा ने तुम्हारी फरियाद सुन ली है,
ईद या दिवाली हो लगे तुम्हारे आशियानों को एक बार ही देख के,
इस तरह मेरी मैयत जाने से पहले, अपने घरो को सजा लेना,
जश्न ऐसा मानना मेरी रुखसत का, के सारा जहाँ रौशन हो जाए,
बाद जाने के मेरे यहाँ से, मेरी यादो के नमो निशाँ मिटा देना,
मेरी साड़ी यादें मेरी चिता के साथ ही जला देना,
मेरी गुजारिश है सब से की एक भी अश्क न बहाना,
गर यु अश्क बहाओगे, तो मुस्कुराते हुए जा न पाउँगा मैं,
समझो कुछ मेरी भी मजबूरी, बुलावा खुदा ने भेजा है, अब रुक न पाउँगा मैं