रविवार, 8 अगस्त 2010

अल्फाजों में कैद कुछ जज़्बात

शायरी क्या है मुझे पता नहीं,
मै नग्मों की बंदिश जानता नहीं,
मै जो भी लिखता हूँ, मान लेना सब बकवास है,
जो कुछ भी हैं ये कैद इन अल्फाजों में ,
बस ये मेरे कुछ दर्द और मेरे कुछ ज़ज्बात हैं

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मै सच नहीं कहता

मै चुप रह कर भी कभी कभी चुप नहीं रहता,
कभी कभी बहुत कुछ कह कर भी कुछ नहीं कहता,
आदत नहीं अब किसी को सच सुनने की,
इसलिए अब मै सच नहीं कहता,
ऐसा नहीं है, के मै ख़ुशी से झूठ बोलता हूँ,
पर इस डर से कही २-४ दुश्मन और न बना लूँ, मै सच नहीं कहता
अब तो बस वही कहता हूँ, जो सब सुनना कहते हैं,
जो बात मेरे दिल में होती है, मै वो बस नहीं कहता,
कहता तो बहुत कुछ हूँ, बस सच नहीं कहता,
सच्चाई की बातें कभी भी गलती से मै अब नहीं करता,
जिसकी जी भी मर्जी हो वो करे, मै किसी को भी कुछ अब नहीं कहता ,
सच्चे होने का नकाब यहाँ तो हर किसी ने पहन रखा है,
डर लगता है मुझे नकाब पहने सच्चे लोगों से,
इन सच्चों की जमात में कही मुझे भी शामिल न कर लें कही,
इसी डर से गलती से किसी के सामने मै अब सच नहीं कहता,

जैसी मेरी आदत हो गयी अब सच न कहने की,
सभी ने आदत बना ली है सच न सुनने की,
क्यों बेवजह मै किसी की आदत बिगाडू, बस इसीलिए मै सच नहीं कहता|

कही कोई गलती से भी मुझे सच्चा न समझ ले, इसीलिए, एक ही गलती दुहराता हूँ मै बार बार,
हर किसीको को मै सच सच बता देता हूँ मै, के मै कभी भी सच नहीं कहता