सोमवार, 18 अप्रैल 2011

बदलते लोग, बदलती दुनिया

सभी लोगों को नमस्कार,
काफी दिनों से कोई पोस्ट नहीं आयी थी, क्योंकि कुछ लिख नहीं पा रहा था, हालात ही कुछ ऐसे थे|
हालत ने पूरी तरह से तोड़ दिया था, खैर हिम्मत जुटा कर मै फिर से खड़ा हो गया हूँ|
उम्मीद है जल्द ही दौड़ना शुरू कर दूंगा जिंदगी की इस दौड़ में|

आशा करता हूँ की आप लोगों को मेरी ये रचना पसंद आएगी|

आपका अपना,
रविश 






ये दुनिया कैसे बदल रही है , कितनी तेजी चल रही है
ज़माने आगे और इंसान पीछे जा  रहा,
देखो तो बाहर से हर इंसान बड़ा हो गया है,
पर इंसान के अन्दर ka   इंसान छोटा हुए जा रहा है,
आज कल हर कोई बड़ी जेब, और दिल छोटा लिए घूमता है,
दूसरों को निचा दिखा कर, हर कोई आज खुद को ऊँचा समझता है,
सामने वाले को धक्का मार कर, यहाँ पे अब हर कोई आगे बढ़ता है,
सभी कहते हैं देश तरक्की कर रहा है, हम तरक्की कर रहे हैं,
पर जब देखता हु चारो तरफ तो सोचता हु, की क्या यही तरक्की है?
ज़माने में इंसान को इंसान की कदर नहीं, किसी को किसी की जान की कदर नहीं,
आज कल के बच्चे बड़े तेज होते हैं( हर मामले में), पर इन बच्चों को माँ-बाप की कदर नहीं,
पता नहीं क्या चल रहा है, पता नहीं क्यों कुछ पता नहीं चल रहा है|








पैसे आज खुशियों का पैमाना हो गए हैं, यूँ लगता है पैसों से बढ़ कर किसी के लिए कुछ नहीं है,
आज कर कोई चीजों को प्यार, और लोगों को इस्तेमाल कर रहा है,
और देखो हर कोई सोचता है, वो इस तरह से आगे बढ़ रहा है,
सोचता हु, ये दुनिया पहले तो ऐसी नहीं थी, ये क्यों ऐसी हो गयी है,
पहले तो ये ऐसी न थी, मेरे बचपन में मैंने ये चीजे देखी न थीं,
डरता हूँ , के मै भी एक दिन शायद बदल जाऊंगा, शायद सबके रंग में ढल जाऊंगा,
पर न बदला  तो संग सबके न चल पाउँगा, पीछे छुट गया तो कभी आगे न निकल पाउँगा|
पता नहीं क्या चल रहा है, पता नहीं क्यों कुछ पता नहीं चल रहा है,
ऐसा लग रहा है जैसे, मेरे अन्दर का इंसान भी बदल रहा है...
क्या सबकी तरह मै भी बदल जाऊंगा??? क्या मै भी एक अलग इंसान बन जाऊंगा???.
khuda 

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