बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

किस कायनात से तुम आयी हो

इठलाती सी, बलखाती सी, सबांबों के रंग उडाती सी,
गुलाब की खुशबू की तरह इस फिजा को महकती सी,
अभी भी बचपन हो जैसे दिल में बसा, ऐसी मासूमियत से मुस्काती सी,
छुई मुई को भी अपनी नाजुक छुंअन से लजाती सी,
बाला की, परियो सी खूबसूरती तुम लाई हो,
के न जाने किस कायनात से तुम आयी हो,
जब से देखा है तुमको बस दिल पे तुम्ही छाई हो,
के इतना बता दो हमे किस कायनात से तुम आयी हो...







तुम्हारी आँखें जैसे मैखाना, बिन पिए ही हम पर खुमारी छाई है,
तुम्हारी मुस्कराहट मोतियों सी , मुकुरती हो तो लगता है ये, सारे जहाँ में खुशी छाई हो,
है तुम्हारे चेहरे पर वो नूर, वो हया, वो मासूमियत, जैसे बचपन की मासूमियत किसी ने, ताउम्र दिल में अपने बसाई हो,
खूबसूरती तुम्हारी कुछ ऐसी है, जैसे "ख़ूबसूरत" अल्फाज़ ने भी जहाँ में एक नयी मिसाल पाई हो,
देखा कर तुम्हे ये लगता "खुदा ने बरसो का वक्त ले, बड़े ही फुर्सत से, खूबसूरती की मिसाल बनाई हो",
देख कर तुम्हे यु लगता है, जैसे परियो के जहाँ से कोई परी, इस जहाँ में चली आयी हो,
अब न सताओ, बस इतना बता दो, कहाँ है वो परियों का देश जहा से तुम आयी हो.


के जब से देखा है तुमको कुछ और देखने की ख्वाहिश न रही,
तेरी सूरत इन आंखों में कुछ ऐसी बसी, कुछ और अब इन आंखों को जचता ही नही,
लाख कोशिशें कर चुका, तेरा चेहरा मेरे जेहन से हटाता ही नही,
कह दो की ये सच है, के इस जहाँ में तुम मेरे लिए ही आयी हो,
रुक जाओ मेरी बन कर, या संग अपने मुझे ले चलो वहां, के जिस कायनात से तुम आयी हो,
जब से देखा है तुम्हे, बस तुम्ही मेरे जेहन में छाई हो,
ख़त्म करो मेरी उलझनों का दौर, बस इतना बता दो हमे,के किस कायनात से तुम आयी हो.

1 टिप्पणी:

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