सोमवार, 27 जुलाई 2009

मेरी जिंदगी एक खुली किताब सी है,

मेरी जिंदगी एक खुली किताब सी है, मैंने अपना हर राज़ अपने चेहरे और अपनी आखो में छुपाया,
कोशिशें तो कई लोगो ने, पर अब तक कोई मेरी चेहरे के इस लिखे को समझ नही पाया है,
इस ज़हान में जाना हर किसी ने, मेरे बारे में जन सिर्फ़ वो ही और उतना ही है, जो कुछ मैंने यहाँ सबको बताया है


मै भला हु या हु बुरा, ये किसी को क्या मालूम,
वो तो समझे मेरे बारे में बस उतना ही हैं जितना उनको हर किसी ने बताया है,
हर एहसास जो उनकी खातिर मेरे दिल में हैं, वो मेरी नजरों में देखते हैं,
नज़रें तो मिलाई हैं कई बार उसने, पर न मेरे एहसासों को क्यो वो समझ पाया नही,

चाहा तो उसे ताउम्र हमने, हाँ पर कभी अल्फाजों में उसे ये बताया नही,
मेरी जिंदगी तो एक खुली किताब सी थी, न जाने इसके लिखे को वो भी क्यो समझ पाया नही,
वो एक बात जो सच है सबसे बड़ा मेरी जिंदगी का, वो भी नही समझा क्योंकि हमने कभी उसे समझाया नही,
चाहत को उसकी दिल में सम्हाले रखा, चाहते हैं तुम्हे ये कभी बेपनाह हम, कभी जुबां से उसको बताया नही....


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