My Friend Manoj Padaliya sent me this almost 1 month ago, I have his permission to publish this to my blog :).
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हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते...
इश्क वाले दगा नहीं करते...
जुल्म करना तो उनकी आदत है ...
ये किसी का भला नहीं करते...
जो नज़र आर-पार हो जय...
वो ही दिल का करार हो जाये...
अपनी जुल्फों का दाल दो साया...
जिंदगी खुस्गावर हो जाये ...
तेरी नजरो को देख पाए अगर ...
शेख बी मै-कुसर हो जाये...
तुझको देखो जो एक नज़र वो रंग...
चाँद भी शर्मसार हो जाये...
आइना अपने सामने से हटा...
ये न हो खुद से प्यार हो जाये...
भूल हो जाती है यु तैश मैं आया न करो...
फासले ख़तम करो बात बढाया न करो ...
ये निगाहे , ये इशारे , ये आदयें तौबा ...
इन शराबो को सरे आम लुटाया न करो ...
शाम गहरी हो कुछ और हसीं होती है...
साये जुल्फ को चेरे से हटाया न करो...
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शुक्रिया मनोज.
nice poem.....
जवाब देंहटाएंawesome lines.. keep it up..
Awesome.........
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