शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है!!!

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, Facebook तो हजारो दोस्त हो गए हैं सबके, पर, बगल में कौन रहता है पता नहीं, 
एक मेरा दोस्त  "मुझसे" अब touch में नहीं, क्योकि हर दिन मै उसे scrap regular karta nahi...

twitter pe प्रियंका चोपड़ा ने क्या कहा ये है सबकी जुबान पर, पर न जाने माँ की बात से क्यों सर दुखता है???
orkut पर एक "दोस्त" ने लिखा "down with fever" तो न जाने कितनी "get well soon"  की scraps कर दी,
third row में  बैठे  बन्दे  को चोट लगी है, आते जाते सबने देखा है,
पर कैसे हुआ, जानने का वक़्त वक़्त ही नहीं, get well soon उसे एक बार भी किसी ने कहा नहीं,
कैसे कहते, वो तो ऑनलाइन friend list में मिला ही नहीं




Flicker/Picasa/Facebook पे दोस्तों की हजारो तस्वीरों पे कमेन्ट कर दिया,
पर बगल में बैठे सह कर्मी (Colleague) को एक बार देखा तक नहीं...!!!
 न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, न जाने क्यों ऐसी ये दुनिया हो गयी है...


हर वक़्त online होना वक़्त की ज़रुरत बन गयी है, 
पर मोहल्ले की अपनी ही लाइन में रहने वालो से मिलने का वक़्त ही नहीं!!!
जो कहना है आज कल सब Twit करते हैं, हर बात अब अपनी लोग Twitter पे करते हैं,
किसी को आज कल चाय की एक प्याली के संग घंटो बातें करने वाला कोई दोस्त मिलता ही नहीं !!!
ये Social Net की दुनिया भी बड़ी अजीब है, online friends तो बहुत मिलते हैं,
पर पुराने दिनों जिन्हें हम कहा करते थे दोस्त, ऐसा कोई साथी यहाँ क्यों  मिलता नहीं,
scrap, twit, wall post तो सब करते हैं, पर अपने दोस्त को कोई अब चिठियाँ अब लिखता नहीं,

न जाने कैसी ये दुनिया हो गयी है, न जाने क्यों ऐसी ये दुनिया हो गयी है...

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

बिन कहे ही सब कुछ बता दिया

अलफ़ाज़  हमेशा  नहीं  होते  अंदाज़-ए-बयाँ का  जरिया, ये हमने  जाना उस  दिन,
जब मैंने अपना  हाल-ए-दिल  उनको  अपनी  आँखों  में  पढ़ा  दिया,
देखा  तो  बहुत  देर  मैंने  उनको, पर  कुछ  भी  न  कहा ,
न  कुछ  कह  कर  भी  मै  बहुत  कुछ  कह  गया,
और  बिन  कहे  ही  मैंने  सब  कुछ  बता  दिया,
चुप  चाप  ही  मैंने  सब  कुछ  सुना  दिया ,
बिन  कहे  ही  सब  कुछ  बता  दिया , बिन  कहे  ही  सब  कुछ  बता  दिया...


बहुत   सोचता  था  के  उनसे  ये  कहूँगा, जो  आयेंगे  वो  मेरे  सामने, उनको  बहो  में  भर  लूँगा,
नर्म  नर्म से उनके  हाथो को  अपने  हाथो  में  ले  कर, एक  शरारत  से  उनके  लब  चूम  लूँगा,
जो  उस  दिन  वो आये  मेरे सामने, पल रुक सा  गया, मै  कुछ भी न कह सका,
उनकी नजरो  में जो  देखा मैंने  अपना  अक्स, तो एक  पल को  लगा  जैसे मैंने  ज़न्नत को  पा लिया,
न मैंने कुछ  कहा, न उसने  कुछ कहा, दोनों ही देर तक खामोश रहे,
पर उसने भी खामोशियों की जुबां से अपना हाल-ए-दिन  बता दिया,
न जाने ये  कैसे हुआ, कब हो गया ये, आज भी एक ख्वाब सा लगता है,
के बिन कहे ही हमने एक दुसरे  को सब कुछ बता दिया, खमोश  रह  कर  भी  हाल-ए-दिल  सुना दिया...





खामोश  अल्फाजों  की  ताक़त  को  अब  मै  जनता  हु, वो  न  कहे  मुझसे भले  ही  एक  भी अलफ़ाज़,
पर उसकी  नजरो  में  कैद  हर  खामोश  लफ्ज़  का  मतलब  मै  जनता  हु,
ये  हुआ  है, पर  कभी  कभी  ख्वाब  सा  लगता  है, पर अब  मै खामोशियों   का  मतलब भी जानता हु (kuchh had tak),

अलफ़ाज़  अब  तो  हमेशा ही   कम  से  लगते  हैं, 
जब  भी उनसे कहनी होती है  दिल  की  कोई  बात, हमेशा  अलफ़ाज़  मुझको  कम  से  लगते हैं,
न  जाने कब ये हो गया मुझको, अल्फाजों को छोड़ मैंने खामोशियो  को  अपनी  जुबां  बना  लिया,
एक  लफ्ज़  भी  न  कहा, बस  चुप  रहा, पर  बिन कहे ही सब कुछ बता दिया, बिन  कहे ही सब कुछ बता दिया...