मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

एक श्रधांजलि: ग़ज़ल के शहंशाह जगजीत सिंह को




हर किसी का वक़्त आएगा, हर जिस्म सुपुर्द-ए-खाख हो जायेगा,
तू क्या लाया था जो ले कर जायेगा, खाली हाथ आया था, और याद रख खाली हाथ ही जायेगा,
तू तो ना होगा अब कभी भी जहाँ में, पर पीछे तेरे तेरा नाम रह जायेगा|
"बेखुदी" के मायने अब बताएगा कौन, "देश में निकले चाँद" की याद पर, परदेशियो को रुलाएगा कौन?
न करो ज़िक्र के "बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी" ये समझाएगा कौन?
"हाथ छूटे भी तो साथ नहीं छुटते", ये बताएगा कौन?
"होठो से छू कर गीतो को अमर" अब बनायेगा कौन?
तेरा जैसा, कोई दूजा न हो पायेगा, तेरे मुरीदों, हर लम्हा तू याद आएगा,


जब देखेगा कोई "बारिश के पानी में वो कागज की कश्ती", नाम तेरा जेहन में आएगा,
कोई जब भी "मुस्कुरा कर गम अपने छिपाएगा", नाम तेरा याद आएगा,
जिक्र जब भी "नज़र से पिलाने" की होगी, तू याद आएगा,
कोई जब सुनाएगा "चिट्ठी न कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश जहा तुम चले गए" कोई, नाम तेरा याद आएगा|

Rest In Peace : Ghazal Maestro Jagjit Singh.



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