मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

एक श्रधांजलि: ग़ज़ल के शहंशाह जगजीत सिंह को




हर किसी का वक़्त आएगा, हर जिस्म सुपुर्द-ए-खाख हो जायेगा,
तू क्या लाया था जो ले कर जायेगा, खाली हाथ आया था, और याद रख खाली हाथ ही जायेगा,
तू तो ना होगा अब कभी भी जहाँ में, पर पीछे तेरे तेरा नाम रह जायेगा|
"बेखुदी" के मायने अब बताएगा कौन, "देश में निकले चाँद" की याद पर, परदेशियो को रुलाएगा कौन?
न करो ज़िक्र के "बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी" ये समझाएगा कौन?
"हाथ छूटे भी तो साथ नहीं छुटते", ये बताएगा कौन?
"होठो से छू कर गीतो को अमर" अब बनायेगा कौन?
तेरा जैसा, कोई दूजा न हो पायेगा, तेरे मुरीदों, हर लम्हा तू याद आएगा,


जब देखेगा कोई "बारिश के पानी में वो कागज की कश्ती", नाम तेरा जेहन में आएगा,
कोई जब भी "मुस्कुरा कर गम अपने छिपाएगा", नाम तेरा याद आएगा,
जिक्र जब भी "नज़र से पिलाने" की होगी, तू याद आएगा,
कोई जब सुनाएगा "चिट्ठी न कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश जहा तुम चले गए" कोई, नाम तेरा याद आएगा|

Rest In Peace : Ghazal Maestro Jagjit Singh.



सोमवार, 18 अप्रैल 2011

बदलते लोग, बदलती दुनिया

सभी लोगों को नमस्कार,
काफी दिनों से कोई पोस्ट नहीं आयी थी, क्योंकि कुछ लिख नहीं पा रहा था, हालात ही कुछ ऐसे थे|
हालत ने पूरी तरह से तोड़ दिया था, खैर हिम्मत जुटा कर मै फिर से खड़ा हो गया हूँ|
उम्मीद है जल्द ही दौड़ना शुरू कर दूंगा जिंदगी की इस दौड़ में|

आशा करता हूँ की आप लोगों को मेरी ये रचना पसंद आएगी|

आपका अपना,
रविश 






ये दुनिया कैसे बदल रही है , कितनी तेजी चल रही है
ज़माने आगे और इंसान पीछे जा  रहा,
देखो तो बाहर से हर इंसान बड़ा हो गया है,
पर इंसान के अन्दर ka   इंसान छोटा हुए जा रहा है,
आज कल हर कोई बड़ी जेब, और दिल छोटा लिए घूमता है,
दूसरों को निचा दिखा कर, हर कोई आज खुद को ऊँचा समझता है,
सामने वाले को धक्का मार कर, यहाँ पे अब हर कोई आगे बढ़ता है,
सभी कहते हैं देश तरक्की कर रहा है, हम तरक्की कर रहे हैं,
पर जब देखता हु चारो तरफ तो सोचता हु, की क्या यही तरक्की है?
ज़माने में इंसान को इंसान की कदर नहीं, किसी को किसी की जान की कदर नहीं,
आज कल के बच्चे बड़े तेज होते हैं( हर मामले में), पर इन बच्चों को माँ-बाप की कदर नहीं,
पता नहीं क्या चल रहा है, पता नहीं क्यों कुछ पता नहीं चल रहा है|








पैसे आज खुशियों का पैमाना हो गए हैं, यूँ लगता है पैसों से बढ़ कर किसी के लिए कुछ नहीं है,
आज कर कोई चीजों को प्यार, और लोगों को इस्तेमाल कर रहा है,
और देखो हर कोई सोचता है, वो इस तरह से आगे बढ़ रहा है,
सोचता हु, ये दुनिया पहले तो ऐसी नहीं थी, ये क्यों ऐसी हो गयी है,
पहले तो ये ऐसी न थी, मेरे बचपन में मैंने ये चीजे देखी न थीं,
डरता हूँ , के मै भी एक दिन शायद बदल जाऊंगा, शायद सबके रंग में ढल जाऊंगा,
पर न बदला  तो संग सबके न चल पाउँगा, पीछे छुट गया तो कभी आगे न निकल पाउँगा|
पता नहीं क्या चल रहा है, पता नहीं क्यों कुछ पता नहीं चल रहा है,
ऐसा लग रहा है जैसे, मेरे अन्दर का इंसान भी बदल रहा है...
क्या सबकी तरह मै भी बदल जाऊंगा??? क्या मै भी एक अलग इंसान बन जाऊंगा???.
khuda 

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

जिंदगी part 2

जिंदगी  हमे  हर  रोज  कुछ  न  कुछ  नया  सिखाती  है...
चाहे  कोई  साथ  चले  न  चले, जिंदगी  बेफिक्र  तन्हा-अकेले  चलती जाती  है,
जिंदगी  इस  तरह  से  हमे  इस  तरह  से  तन्हा  हो  कर  कभी  रुक न जाना नहीं  ये  सिखाती है,
जिंदगी  हर  रोज  हमे  कुछ  नया  बताती है...

न रूकती है, न थकती है, न कभी आलस कर के सुस्ताती है,
चाहे कितनी भी मुश्किल और  कांटो भरी राह हो, ये चलती जाती है,
रुक न जाना कभी काँटों भरी मुश्किल राह देख कर,
काँटों पर चल जिंदगी हमे ये बताती है,
जिंदगी हमे हर रोज कुछ न कुछ सिखाती है|
ना मुमकिन तो  कुछ भी नहीं, जो  तू चाह तेरी मंजिल है वही,
इंसान को चाँद तक पहुंचा कर जिंदगी हमे ये बताती है,
जिंदगी हमे हर रोज कुछ न कुछ नया सिखाती है,
जिंदगी हमारी हर पल एक पल आगे निकल जाती है|