धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगे,
ये नेता नहीं हैं, ये हैं मौत के सौदागर,
ये तो लाश पर से उठा कर कफ़न बेच देंगे,
खुशियाँ मानना इनसे बचकर ज़रा,
नहीं तो ये तेरा खुशियों से भरा आँगन बेच देंगे ,
कभी किसी से न कहना , के , ये नीला आसमान हमारा है ,
पाता नहीं किसको ये नीला गगन बेच देंगे ,
जाना जो कभी तू बाग़ में , तो सांस धीरे से ही लेना ,
नहीं तो ये हमारा महकता हुआ चमन बेच देंगे ,
इन्हें तो हर दिन इन्तेजार होता है बस हादसों का ,
गर लाशें जमा करने पर भी वोटें मिलने लगे इनको ,
तो लाश इक्कठा करने में ये अपनी लाज-शर्म बेच देंगे ,
इनका न है ज़मीर जिंदा , अगर हम अब भी न जगे तो ,
ये तो विदेशो में हमारी माँ, बहन बेच देंगे...
खुशियाँ मानना इनसे बचकर ज़रा,
जवाब देंहटाएंनहीं तो ये तेरा खुशियों से भरा आँगन बेच देंगे
... जबरदस्त रचना ... बहुत बहुत बधाई, बेहद प्रसंशनीय रचना!!!
Excellent one... keep it up!
जवाब देंहटाएंvery nice. :)
जवाब देंहटाएंVishwas.
Well done Ravish...very true what u've written, in today's context!!
जवाब देंहटाएंvery Nice Sirjiiiiiiiiiii,
जवाब देंहटाएंKya baat likhi hai.................
well written...though i took much time to read as i am not used to Hindi as such. But great post :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद, really thanks to everyone who took out 2 minutes from there busy life for me.
जवाब देंहटाएंमै कोशिश करूँगा ऐसे ही लिखता रहूँ|
नेताओं को इतना बेगाना मान लेने पर उनके स्वच्छंद होने की आशंका बढ़ने लगती है, वे हमारे ही भाई-बंदे हैं, गैर नहीं, हमारे प्रतिनिधि, हमारी आवाज. अब एक बार फिर सोचें कि ऐसा क्यों.
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